त्रिशंकु का दर्द व दिल्ली का रास्ता
दिल्ली का रास्ता
भले ही किसी चंगेज
या फिरंगी के लिए
दिल से निकला होगा साथी।।
पर अपना गांव छोड
शहर में बसे आदमी का रास्ता
किसी के दिल से नहीं
मजबूरी में ही निकला है साथी ।।
कोई रोजी रोटी के लिए
कोई शिक्षा के लिए
कोई इलाज के लिए
तो कोई सपनों को
साकार करने के लिए
कोई जीने के लिए
अपने घर से मजबूरी में
घर छोड कर निकला होगा साथी।
आज इन्हीं मजबूर लोगों से
आज आबाद है दिल्ली
कहीं अट्टालिकायें
तो कहीं झोपडीं
गा रही है गीत
जिन्दगी के साथी
पर अब वहीं दिल्ली से
घर वापसी का रास्ता
शहर की चकाचैध में बंद है साथी ।।
गांव भले ही उजड रहे हों
अपनों के ही इस वियोग से
पर इन त्रिशंकुओं के दिलों में
बस कर भी उजडे गाव
आज फिर से आबाद है।
ंवे त्रिशंकुओं को हर पल रूलाते
रह रह कर अपने पास बुलाते
पर त्रिशंकु आज भी बैचेन है
न शहर के बन पाये न गांव के
शहर भी उनको बताते बेगाने
आवासी हो कर आये दिन
झेलते हैं प्रवासी का दंश
त्रिशंकु आखिर कब तक
रहोगे न घर के न शहर के।।
-देवसिंह रावत
(9 की रात व 10 जनवरी 2014 की प्रातः 9 बजे )
दिल्ली का रास्ता
भले ही किसी चंगेज
या फिरंगी के लिए
दिल से निकला होगा साथी।।
पर अपना गांव छोड
शहर में बसे आदमी का रास्ता
किसी के दिल से नहीं
मजबूरी में ही निकला है साथी ।।
कोई रोजी रोटी के लिए
कोई शिक्षा के लिए
कोई इलाज के लिए
तो कोई सपनों को
साकार करने के लिए
कोई जीने के लिए
अपने घर से मजबूरी में
घर छोड कर निकला होगा साथी।
आज इन्हीं मजबूर लोगों से
आज आबाद है दिल्ली
कहीं अट्टालिकायें
तो कहीं झोपडीं
गा रही है गीत
जिन्दगी के साथी
पर अब वहीं दिल्ली से
घर वापसी का रास्ता
शहर की चकाचैध में बंद है साथी ।।
गांव भले ही उजड रहे हों
अपनों के ही इस वियोग से
पर इन त्रिशंकुओं के दिलों में
बस कर भी उजडे गाव
आज फिर से आबाद है।
ंवे त्रिशंकुओं को हर पल रूलाते
रह रह कर अपने पास बुलाते
पर त्रिशंकु आज भी बैचेन है
न शहर के बन पाये न गांव के
शहर भी उनको बताते बेगाने
आवासी हो कर आये दिन
झेलते हैं प्रवासी का दंश
त्रिशंकु आखिर कब तक
रहोगे न घर के न शहर के।।
-देवसिंह रावत
(9 की रात व 10 जनवरी 2014 की प्रातः 9 बजे )
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